ज्योतिष एक विज्ञान है। विज्ञान का सबब ही यही है कि इसे सतत शोध की आवश्यकता रहती है। शोध कार्य को कभी भी विश्राम नहीं दिया जा सकता। एक बात सदैव स्मरण रहे कि ज्योतिष में आप कितना भी शोध कर लो, आपका शोध हमेशा वैदिक सूत्रों पर ही टिका रहेगा। वैदिक ज्योतिष तो ज्योतिष का मूल आधार है। जो लोग कहते हैं कि उनका शोध सही है पर वैदिक ज्योतिष गलत है, वो भी मूढ़मति ही हैं, कहीं कुछ कम नहीं।
प्रत्येक इंसान की कुंडली अपने आप में अद्वितीय होती है, किसी भी दूसरे की कुंडली से मेल नहीं खा सकती। किन्हीं भी दो व्यक्तियों की जीवन शैली और जीवन में सुख दुख का घटनाक्रम एक जैसा नहीं हो सकता। जब दो व्यक्ति जुड़वां पैदा होते हैं, कितने कम समय के अन्तराल सें, फिर भी दोनों का भविष्य एक जैसा नहीं होता। कई बार तो दो में से एक जीवित रहता है और एक तुरन्त मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। पढ़ाई भी अलग अलग होती है। और कोई एक बिजनेस करता है तो दूसरा नौकरी। शादी एक की जल्दी और दूसरे की देर से। ऐसे अंतर को पाटने में वैदिक ज्योतिष की अपनी सीमाएं हैं। सबसे शीघ्र बदलता है लग्न, वो भी लगभग दो घण्टे के अंतराल से। उसके बाद सबसे जल्द बदलता है चन्द्र, वो भी सवा दो दिन के अंतराल में। जब कुंडली में ही कुछ नहीं बदलता तो जीवन घटनाक्रम को अलग अलग कैसे रेखांकित करेंगे।
वैदिक ज्योतिष की इस सीमा को पाटने का कार्य किया कृष्णमूर्ति जी ने, जिन्होंने उपनक्षत्र से कुंडली देखने की प्रथा प्रतिस्थापित की। पर इस पध्दति की भी अपनी अनेक सीमाएं रहीं। फिर KB आदि कई पध्दतियों का विकास हुआ। सभी में कुछ न कुछ सीमाएं रहीं। इन सीमाओं को समाप्त कर, सभी पध्दतियों को एक सूत्र में एकत्र कर, नयी विधा को नाम दिया गया GSA यानि Gupta System of Astrology.
मित्रो, एक लग्न लगभग दो घण्टे रहता है, इसमें सवा दो नक्षत्र होते हैं, इस तरह एक नक्षत्र लगभग 50 मिनट रहता है। उप नक्षत्र लगभग 6 मिनट और उपउप नक्षत्र रहता है लगभग 50 सेकण्ड्स। उपउप नक्षत्र पर हम कतई भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि इतने कम समय की शुद्धता हमें प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिये हम उप नक्षत्र से कुंडली का विवेचन शुरू करते हैं। आप सही सोच रहे हैं कि यहां तो जन्म समय का 6 मिनट के लगभग अंतर है फिर कैसे हम कुंडली के सूक्ष्म विवेचन का दावा करते हैं। निश्चिंत रहें कि जब इस उप नक्षत्र का नक्षत्र और उप नक्षत्र हम लेंगे, ये अंतर भी मिट कर हमें सूक्ष्म विश्लेषण प्राप्त होगा।
अब ये 6 मिनट का अंतर भी सही है कि नहीं, इसके लिए हम जन्म समय शुद्धिकरण करते हैं। सभी पद्धतियां और सभी ज्योतिषी रूलिंग प्लैनेट्स के आधार पर जन्म समय शुद्धिकरण करते हैं पर GSA में हम ऐसी प्रथा का समर्थन नहीं करते। ये प्रथा न तो तर्कसंगत है और न ही वैज्ञानिक। हम बिना रूलिंग प्लैनेट्स के ही जन्म समय शुद्धिकरण करेंगे।
1) प्रश्न किसी ने भी पूछा हो, माता, पिता, सन्तान, पत्नी, पति, पड़ोसी, मित्र, अजनबी, किसी काले चोर ने ही क्यों न पूछा हो, हम कुंडली को (Rotate) नहीं करेंगे, घुमाएंगे नहीं, हम किसी भी स्थिति में कुंडली को Rotate नहीं करेंगे।
2) ग्रह वक्री हो मार्गी हो, अस्त या उदित हो, नीच का उच्च का, कुछ भी हो, हम इसे नॉर्मल ग्रह की तरह ही लेंगे, चाहे प्रश्न कुंडली हो या जन्म कुंडली या टाइम कुंडली।
3) प्रश्न की प्रकृति चन्द्र से नहीं, लग्न से देखेंगे।
लग्न ही प्रश्न के बारे और लग्न ही से प्रश्न का उत्तर भी मिलेगा।
4) आवश्यकता पड़ने पर या घटना की टाइमिंग (Timing) के लिये हम संबंधित भाव औऱ फिर दशा को टटोलेंगे।
5) प्रश्न कुंडली से केवल एक ही प्रश्न का उत्तर मिलेगा जिसके लिये प्रश्न किया गया है।
6) हम लग्न चार्ट नहीं, बल्कि भाव चार्ट का अध्ययन करेंगे।
7) हम कभी कभार GSA में भी कुछ वैदिक टिप्स या कुछ वैदिक सूत्रों का इस्तेमाल करते हैं, उस स्थिति में हम लग्न कुंडली का प्रयोग करेंगे न कि भाव कुंडली का।
8) बाधक ग्रह भी जब हम देखेंगे, लग्न कुंडली से देखेंगे। GSA में बाधक ग्रह 11,9,7 नहीं; 11,3,7 लिए जाते हैं। चर लग्न के लिये 11वां, स्थिर लग्न के लिये 3सरा और द्विस्वभाव के लिये 7वां।
9) हम किसी भी भाव को उसकी राशि से नहीं, उसके उप नक्षत्र के माध्यम से तराशेंगे।
10) जातक कहीं भी हो, प्रश्न स्थान और समय वो लिया जायेगा जब और जहां बैठ कर ज्योतिषी प्रश्न का हल करेगा।
11) अगर जन्म कुंडली का मामला हो तो हम हर किसी का BTR अवश्य करेंगे, और ये BTR हम बिना रूलिंग प्लैनेट्स के करेंगे।
12) GSA में CIL यानि कस्पल अन्तर संबंध से विश्लेषण किया जाता है, ग्रह किस राशि का स्वामी है और कहाँ बैठा है, ये हमारे सबसे अंतिम यानि चौथे दर्जे के कार्येश रहेंगे।
13) प्रश्न कुंडली में कार्येश के लिये मुख्यता उप नक्षत्र और साथ ही साथ उपउप नक्षत्र से भी लेंगे। (चाहे ग्रह धीमी गति का हो चाहे तीव्र गति का)
14) जन्म कुंडली में कार्येश के लिए मुख्यता उप नक्षत्र के साथ उपउप नक्षत्र से भी कार्येश लेंगे ( अगर ग्रह धीमी गति का है तो), अन्यथा उप नक्षत्र के साथ नक्षत्र से कार्येश लेंगे (अगर ग्रह तीव्र गति का है तो)
धीमी गति के ग्रह हैं–राहु, गुरु, शनि, बुध, शुक्र।
तीव्र गति के ग्रह है–सूर्य, चन्द्र, मंगल, केतु।
15) हम अपने सॉफ्टवेयर को अयनांश में KP New पर, और राहु केतु को True/Mean में से True पर सेट करेंगे।
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